Poem on Corona Times
ये वक़्त नहीं है आसन,
उलझा हुआ है हर इन्सान,
गाँव से गए शहर,
चल गइली इक नई लहर,
कंपनियों ने खोले रास्ते ,
खींच लाये पैसे के वास्ते,
बैंको नी दिया लोन,
घर बनाकर समझने लगे डॉन।
बच्चे भूल गए दादा दादी नाना नानी का प्यार,
साल में मिलने लगे एक बार,
भूल गए वह हैं परिवार का हिस्सा,
हो गया मुश्किल याद रखना हर किस्सा,
चाचा चाची मामा मामी हो गए Uncle Aunty
बनने लगेगी दोस्त यार चाचा चाची।
फिर एक दौर आया है,
कोरोना न सबको घर बिठाया है,
कुछ ऐसे है जो गए परिवार के पास,
सबको घर बैठे ठीक होने की है आस,
कितनो ने घर वाले है खोये,
सोशल मीडिया पर शेयर करके ही रोये,
पैसा अकाउंट में जुड़ता जा रहा है,
महत्वपूर्ण वही जो परिवार को हंसा रहा है।
आज कोरोना ने समझा दिया,
सबको परिवार याद दिला दिया,
बहुत करली भीड़ खड़ी,
छूट गए सब ,अब मुश्किल आन पड़ी।
है प्रभु ! कैसा समय दिखाया है,
इंसान को इंसान से ही डराया है,
ये प्रर्थना है मेरी आपसे,
ठीक करदो दुनिया के वास्ते,
हो गयी गलती नहीं समझे प्रकृति की कीमत,
बस करदो अपना केहर , बरसाओ हम पर रेहमत।
याद रहेंगे इतिहास में ये साल,
जब डॉक्टरों ने संभाला पृथ्वी को बेमिसाल,
सच ही कहा है किसीने,
मुसीबत पड़ने पर निकले पसीने,
हरिजनों को नहीं मिलती थी इज़्ज़त,
करते हैं अब वह रोज़ हिम्मत,
उन्होने हर दिन जोखिम उठाया है,
सफाई रख कर अपना फ़र्ज़ निभाया है।
सुरक्षा कर्मियों के भी क्या कहने
चाहे वे हो सरहद पर,सोसाइटी में या थाने,
दिन रात नियम मानने की कीमत हमें समझायी है,
घर बैठने में ही सबकी भलाई है।
दिन रात नियम मानने की कीमत हमें समझायी है,
घर बैठने में ही सबकी भलाई है।
धन्यवाद
ईशा
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